Thursday, April 29, 2021

कौन थे "सरहद के सुल्तान" गाजी फकीर !! पढ़े मो: रशीद पोकरण की कलम से...

 *एक सूरज था के तारों के घराने  से उठा* 

 *आंखें हैरान है क्या शख्स जमाने से उठा* 


 *अज़ कलम* ✍️ *मोहम्मद रशीदी जामिया तुर्र रशीद बड़ली पोकरण जिला जैसलमेर राजस्थान* 


 बिला शुबा मौत एक ऐसा फितरी और हकीकी अमल है जिससे किसी इंसान को छुटकारा नहीं 

 *मौत से किसको रुशतगारी है* *आज वह कल हमारी बारी है* *आगाज किसी शै का ना अन्जाम रहेगा। आखिर वही अल्लाह का 1 नाम रहेगा।* 


शायरे मशरिक़ अल्लामा इक़बाल मौत की आलमगीरियत को कुछ इस तरह से बयान करते हुए नजर आते हैं कहते हैं बूएेगुल हों बाग हों या फिर गुलचीन हर एक शै उसी की असीर है। यह रख्ते हस्ती के पुर्जे उड़ाती है तो जिंदगी के शरारों को बुझा कर रख देती है उसी की आंखों में नेस्ती  का जादू है जो फना होजाने का पैगाम देती है और यह कहने को मजबूर कर देती है कि

 *जिंदगी इंसान की है मांनिन्द ए मुर्गे खुशनवा* 

 *शाख पर बेठा कोई दम चहचहाया  उड गया* 

 *आह क्या आऐ ऱियाजे़ दहर में और क्या गऐ* 

 *जिंदगी की शाख से फूले खिले मुरझा गए।* 


 रोजे अव्वल से आज तक लाखों नहीं बल्कि करोड़ों इंसान इस जहांने संन्ग ए खिशत और कुर्राएे अरज़ पर अपने अपने वक्त पर आए और सब के सब अपने अपने वजूद की हस्ती से आजा़द होकर खाक में पिन्हां  हो गए। लेकिन बहुत कम ऐसी शख्सियतें गुज़री हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में बल्कि बाद अज़ मरग भी अपनी शोहरत व नामवरी का आफताब ओजे़ सुरय्या पर कायम रखा। इनहीं कदआवर और बुलंद पाया शख्सियात  में से *हुर्र जमात के अजीम सियासी व समाजी और कौमी पेशवा और कदीम सिंधी रिवायात के मुहाफिज और अमीन जनाब गाजी फकीर साहब* भी थे जो तवील अलालत के बाद अपने हजारों अकीदतमंन्दों व इरादतमंन्दों पैरोंकारों और मुरीदों को दाग ए मुफारक़त देकर अपने आबाई  वतन में हमेशा हमेश के लिए आसूदा ए ख्वाब हो गए। 


 *रंन्गों  का खिरमन सोता है* 

 *बन में चमन सोता है* *कितने ख्वाबों और फूलों का एक अलबेला पन सोता है* 


 बिला शुबाह  उनकी रेहलत व जुदाई ने खित्ता ए मारवाड़ के सियासी हलकों में खुशूशन हुर्र जमात के दरमियान एक ऐसा खला पैदा कर दिया है जिसका बजा़हिर पुर होना नामुमकिन न सही बल्कि मुश्किल जरूर नज़र आता है।

 वह एक अजी़म  समाजी और मुआशरती रहनुमा  होने के साथ-साथ मारवाड़ की सियासत में अपना गैर मामूली असरो रसूख और बुलंद पाया मुकाम रखते थे 

 *यह रूतबा एे  बुलंन्द  मिला जिसको मिल गया।* 

उनकी शख्सियत एक ऐसे पाबा ए गुल  की तरह थी जिसकी महक से दूर-दूर की फिजा़ मुसश्कबार रहती थी। 

बिला शुबा गाजी़ फकीर सियासत  की दुनिया का एक ऐसा मकबूल तरीन नाम था जिसको सदियों तक जमाना याद रखेगा 

 *भुला सकेगा ना मुझको जमाना सदियों तक* 

 *मेरी वफा के मेरे फिकरो फन के अफसाने*

सूबा ए सिंध में वाके पीरगोठ दरगाह शरीफ की कुल 12 चोकियों के 12 खुलाफा में से गाजी़ फकीर जैसलमेर नामी चौकी के एक खलीफा और मुख्या थे । यह चौकियां सिंध बलूचिस्तान और पंजाब के मुख्तलिफ हिस्साें और इलाकों में अब भी मौजूद हैं। 

और दरगाह शरीफ के मुकम्मल इखराजात और इंतिजामात साल भर इनहीं चौकियों के सपुर्द हुआ करते हैं। 

सर जमीने सिंध में *राशिदी खानदान* की ईलमी और दीनी खिदमात किसी भी तरह कम नहीं है। इस सिलसिले का एक-एक फरद दुर्रे शहशवार होता आया है सिंध में  दूसरा खानदान शाजो़ नादिर ही नज़र आएगा जिसने इलम व अदब की इतनी खिदमत की हो 

इलमो अदब  के हर गोशे में इस खानदान नें गोहर पैदा किए। तारीख .सीरत .रिजाल, हदीस फिकह.  लोगत. हिकमत. फलसफा. अदब. और शायरी में मुस्तनद और माने हुए माहिरीन पैदा हुए जिन्होंने अपनी इलमी आबयारी से पूरे सिंध को सेैराब कीया।

 अलावा  अजी़ इस खानदान को सैयद अहमद शहीद रहमतुल्लाह आलेह और शाह इस्माईल शहीद रहमतुल्लाह और उनकी जमात ए मुजाहिदीन की मेज़बानी का एजा़ज भी हासिल है।

 *राशिदी  खानदान* असल में सैयद अली मक्की रहेमाहुल्ला की औलाद में से है। 

मोहम्मद बिन कासिम ने अहदे बनूऊमय्या में जब सिंध का रुख किया और राजा दाहिर की हुकूमत का खातिमा किया तो उनके साथ आने वालों में हजरत सैयद अली मक्की भी थे जिनका सिलसिला ए नसब हजरत इमाम मूसा काजि़म से जा मिलता है जो हजरत इमाम जअफर सादिक के साहिबजादे ओर इमाम जैनुल आबदीन के पडपोते थे। 

 उन्होंने दादू के कोहसतानी  इलाके में सुकूनत इख्तियार की  आपके अखलाफ में लक अली वाले शाह सदरुद्दीन गुजरे हैं जो इस इलाके की निस्बत से लकयारी सादात कहलाए। 

सदरुद्दीन की 15 वीं पुश्त में साईं मोहम्मद बका़ शाह तवल्लुद हुए जो *पट्ट धनी* के तौर पर मारूफ थे। और उनके बड़े साहिबज़ादे सैयद मोहम्मद राशिद को *रोजा धनी* कहा जाता है उनकी वफात हुई तो खानदानी तबर्रुकात तकसीम हुए बड़े साहिबजादे सैयद सिबगतुल्ला शाहे अव्वल को खानदानी दसतार जिसकी निस्बत *सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम* से थी वरासत में मिली जबकि दूसरे भाई को झंडा अलम  या परचम इनायत हुआ आज भी जिला मटयारी में मुतअद्दद मकामात पर झंन्ड़़े  वाले राशिदी पीर आबाद हैं।  जिनकी इल्मपरवरी और किताब दोस्ती दूर-दूर तक मशहूर है।

पीर सिबगतुल्ला  शाहै अव्वल की वफात पर उनके फर्जंद साईं गौहर शाहे अव्वल  उर्फ असगर साईं पीर पगारा 2  बने जो *बंगले धनी* कहलाए। उनके बेटे साईं हिज़बुल्ला शाहे मिसकीन  ने तीसरे पीर पागारा का मनसब संभाला उन्हें *तख्त धनी* पुकारा जाता था। और उनकी वफात हुई तो  सिलसिला ए राशिदिया के चौथे पीर साईं अली गोहर शाहे सानी मुकरर हुए जो *मुहाफे  घनी* से मशहूर हुए। 

आपके विसाल पर छोटे भाई साईं अली मरदान शाहे अव्वल जिन्हें *कोट धनी*  कहा जाता था पांचवें पीर पगारा कहलाए। आपकी वफ़ात  हुई तो पीर सैय्यद मोहम्मद सिबगतुल्ला शाहे सानी ने *पग धनी* की ऊरफियत के साथ मन्सब  संभाला और हुरों को मुनज्जम किया अंग्रेजों को चैलेंज किया। जब आप पीर पगारा बने तो आपकी उम्र 12 वर्ष थी और हैदराबाद जेल में फांसी के फंदे को जब चूमा तो जिंदगी की महज 33 बहारें  ही  देखी थीं

 इस जुरअत मंदी और सरफरोशी के बाईस आपको   *सूर्यह बादशाह* भी पुकारा जाता है आपके बड़े साहबजादे ऊर्फ शाह मरदान शाहे सानी ने *छठ्ठ धनी* का लकब पाया ओर सातवें पीर पगारा कहलाए। मौजूदा  पीर पागारा हशतुम पीर सिबगतुल्ला शाहै सोम को *राजा साईं*  से पुकारा जाता है।

पीर सिबगतुल्ला शाह सोम के वालिद ए बुज़रुगवार  मरदान शाह पीर पगारा का शुमार कूचा ए सियासत की उन नाबगारे रोजगार और गोना गो सलाहियतओं की मालिक सियासी व समाजी शख्सियात में होता है जिन्होंने पाकिस्तान की मुलकी सियासत पर निस्फ सदी तक अपने गहरे नुकू़श व असरात छोड़े। हुकूमतें उनके एक इशारे पर बनतीं और गिरती थीं। 

पीराने पागारा के मुरीदीन को *हुर जमात* का नाम दिया जाता है 

मारूफ अदीब मोहम्मद उस्मान ढिप्लाई ने अपनी किताब सांघड़ में लफज़ ए हुर के इखराज की निशान दही इस तरह से की है। 

मैदान ए कर्बला में हजरत हुर ने आखिरी वक्त पर लश्कर ए यजीद को छोड़कर खैमागाह सैय्यदुश्शुहादा का रुख करके अपनी आकिबत को संवार लिया था । 

बिला शुबा हजरत हुर का यह जुरअतमंदआना इकदाम और फैसला था उसी दिन से जुरअतमंदी. बहादुरी और शुजा़अत के माना में लफज ए हुर मुस्तामल  होने लगा। और फिर सीना सिपर मुजाहिदीन हुर कह लाए।

 जमात में अपना एक सिस्टम है माजी़ में तो जमात के छोटे बड़े फैसले दावती किया करते थे दीवती से मुराद वह शख्सियात हैं जिनके यहां पीर पागारा दौरान ए  रूहानी सफर कि़याम किया करते थे। आज भी मुख्तलिफ शहरों में वह लान्डियां या कियामगाहें मौजूद हैं जो पीराने पागारा की आमद पर ही इस्तेमाल होती हैं अलबत्ता उनकी सफाई .मरम्मत और तज़ईन व आराईश साल भर होती रहती है अब भी पीर पागारा के खोलाफा और दरगाह की फैसला कमेटी हूरों के मामलात निमटाते हैं और फैसले पर अमल दर आमद  यकीनी होता है। जमात की एक इसतिलाह *हाथ बंद* भी है यानी तादीबी  कार्रवाई के तौर पर यह सजा़ जब किसी को सुनाई जाए तो उस शख्स से कोई भी हाथ नहीं मिलाता और मुसाफे का ताल्लुक भी खत्म हो जाता है इस गध्धी की एक खुसूसियत मरबूत सिस्टम भी है जो उसे एक दूसरे से समाजी एतिबार से जुड़े हुए रखती है और हरकिसम की मुआशराती बुराइयों से जमात को महफूज भी रखती है। 

इस जमात की एक कदीम रिवायत यह भी रही है कि जब किसी पीर या खलीफे का इंतितिकाल होता है तो फिर तदफीन से पहले ही नया पीर और खलीफा मुनतखब कर लिया जाता है 

बिना बरीं गाजी़ फकीर की रेहलत के बाद हुर जमाअत ने अब ब ईत्तिफाक ए राय ऊनके सबसे बड़े बेटे *जनाब साले मोहम्मद* जो इस वक्त राजस्थान की सरकार में केबिनेट मंत्री भी है .....को अपना नया खलीफा और पेशवा चुन लिया है। उनकी दसतार बंदी भी अमल में आ चुकी है हम उम्मीद करते हैं कि वह भी अपने नामवर वालिद की तरह हुर जमात को और मजबूती बख्शेंगे  उनकी मुकम्मल रहनुमाई और कयादत का हक अदा करेंगे ।

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